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महालया

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सर्वप्रथम आप सभी महालया पर्व की हार्दिक शुभकामनायें। कल से महालया आरम्भ हो गया है। महालया उत्तर भारत, विशेष कर बंगाल का एक अति महत्वपूर्ण पर्व है। ये एक संस्कृत शब्द है जो "महा+आलय"से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है "महान आवास"। ये पर्व हर पितृ पक्ष समाप्त होने के अगली अमास्या को पड़ता है और इसी दिन के साथ दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि का आरम्भ माना जाता है। महालया के अगले दिन ही नवदुर्गा के पहले रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माँ दुर्गाकैलाश छोड़ कर १० दिनों के लिए पृथ्वी पर आती हैं और समस्त बुरी शक्तियों से जगत, विशेषकर बच्चों की रक्षा करती है। ये पर्व अधिकतर बंगाल में मनाया जाता है और माता से आज के दिन पृथ्वी पर अवतरित होने की प्रार्थना की जाती है ताकि वे महिषासुर का वध कर सके। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब पृथ्वी महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी तब उसके नाश लिए आज के दिन ही माँ दुर्गा का प्राकट्य हुआ।

महालया से ६ दिन बाद, अर्थात षष्ठी से दुर्गा पूजा का वास्तविक आरम्भ माना जाता है। मेलों एवं अनुष्ठानों का आरम्भ षष्ठी से ही होता है। महालया के दिन सभी लोग प्रातः उठ कर सर्वप्रथम अपने पितरों को याद करते हैं और उनका धन्यवाद अदा करते हैं। इसी के साथ वे अपने पितरों से ये प्रार्थना करते हैं कि वे अब वापस अपने लोक में लौट जाएँ। बाद में देवी की महामाया मूर्ति की पूजा होती है और कई प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोज कराने का भी विशेष महत्त्व है।

माँ दुर्गा की मूर्ति में उनकी जीवंत आँखों का बहुत महत्त्व होता है और महालया के दिन ही मूर्तिकार माता के मूर्ति की आँखों का निर्माण करते हैं। महालया के दिन माता के नेत्र की रचना करने की ये परंपरा सदियों पुरानी है। अधिकतर कलाकार आज माता के तीसरे नेत्र को सबसे बनाते हैं और फिर अन्य दो नेत्रों का निर्माण किया जाता है। दुर्गा मूर्ति की आँखों के निर्माण के बाद ही उस मूर्ति को पूर्ण रूप दिया जाता है। इसके बाद ही ये मूर्तियाँ पूजा पंडालों की शोभा बढाती है।

महालया का दिन मुख्यतः दो भागों में बंटा होता है। आधा दिन पितरों को विदाई देने और फिर आधा दिन माँ दुर्गा के आगमन का होता है। दोपहर तक सभी लोग पूजा अनुष्ठान द्वारा अपने पितरों को भोग लगाते हैं। फिर उस भोग के पांच भाग कर एक देवताओं को, दूसरा गाय को, तीसरा कौवे को, चौथा श्वान (कुत्ते) को और पांचवा चीटियों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद लोग अपने पितरों को अंतिम बार जल पिला कर उनसे वापस अपने लोक लौट जाने की प्रार्थना करते हैं।

इसके बाद शाम से महालया का दूसरा भाग आरम्भ होता है जब सभी स्नानादि से निवृत हो, नए वस्त्र पहन कर माँ दुर्गा के धरती पर आगमन के स्वागत के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि संध्या पूजा के बाद भक्तों के आह्वान पर माँ दुर्गा कैलाश पर भगवान शंकर से आज्ञा लेकर अगले १० दिनों तक पृथ्वी पर रहने आती है। नवरात्रि के बाद १०वें दिन माता के विसर्जन के बाद वो पुनः पृथ्वी छोड़ कैलाश को लौट जाती हैं।

महालया को एक स्त्री के ससुराल से अपने पीहर आने के रूप में भी देखा जाता है। बंगाल में विवाहित स्त्रियों का महालया के दिन अपने मायके जाने की भी परंपरा है जहाँ उन्हें माता का रूप ही मान कर उनका स्वागत किया जाता है। बंगाल में इसे एक उत्सव के रूप में देखा जाता है इसीलिए देश के अन्य राज्यों से अलग बंगाल में दुर्गा पूजा में मांसाहार, विशेषकर मछली खाने की परंपरा है।

एक मान्यता के अनुसार महालया को भारत में फसलों के पकने के दिन के रूप में भी देखा जाता है। इसीलिए किसान आज के दिन अपने फसलों का पहला भाग देवताओं को समर्पित करते हैं। देवताओं के अतिरिक्त अपने पितरों को भी अन्न एक पिंड के रूप में अर्पण करने की परंपरा रही है। इसके बाद ही दुर्गा पूजा और अन्य पर्वों का शुभारम्भ किया जाता है।

महालया, नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा महिला सशक्तिकरण का एक उत्तम उदाहरण है। ये दर्शाता है कि जब सभी पुरुष (देवता) महिषासुर को परास्त करने में असफल हो गए तब त्रिदेवों में स्त्री शक्ति के महत्त्व के प्रतीक में अपने-अपने तेज से माँ दुर्गा का आह्वान किया। में त्रिदेवों के साथ सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र उन्हें प्रदान किये जिसके द्वारा माता ने ९ दिनों तक युद्ध करने के बाद १०वें दिन महिषासुर का वध कर दिया। तो ये पर्व वास्तव में एक स्त्री में सभी पुरुषों की सम्मलित शक्ति का प्रतीक है।

तो आइये आज के दिन हम माता के आगमन का स्वागत करें और अपने भीतर के छिपे अंधकार को उनके तेज द्वारा नष्ट करें। जय माँ दुर्गा।

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